लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2634
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान

प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।

अथवा
"विकास एक निरन्तर प्रक्रिया है" स्पष्ट कीजिए।
अथवा
विकास के सिद्धान्तों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर  -

विकास एक निरन्तर प्रवाहित होने वाली प्रक्रिया है जो गर्भावस्था से मृत्यु तक चलती है। इस प्रक्रिया में नयी विशेषताओं एवं योग्यताओं का समावेश हो जाता है। बालक का विकास कुछ निश्चित नियम एवं सिद्धान्त पर आधारित है। जो विकास की विशेषताएं बनाते हैं। ये सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

1. विकास अवस्थाओं के द्वारा अग्रसर होता है (Development Proceeds by Stages)—बालकों का विकास कुछ अवस्थाओं के द्वारा अग्रसर होता है। ये अवस्थाएँ विकास अवस्थाएँ (Stages of Development) कहलाती हैं। प्रत्येक विकास अवस्था की कुछ अपनी प्रमुख विशेषताएँ होती हैं जो उस विकास अवस्था को दूसरी से भिन्न रखती हैं। इन विकास अवस्थाओं के सम्बन्ध में कहा गया है कि, “एक विकास अवस्था दूसरी विकास अवस्था से प्रमुख लक्षणों के आधार पर अलग की जाती है एक अग्रणी विशेषता जो विकास अवस्था को न्याय संगतता, एकता और अनोखापन प्रदान करती है।" जब बालक का विकास प्रतिमान सामान्य होता है तब एक विकास अवस्था बालक को दूसरी विकास अवस्था के लिए तैयार करती है। कुछ प्रमुख अवस्थाएँ निम्न प्रकार से हैं-

(a) गर्भकालीन अवस्था (Prenatal Period: Conception to Birth) - यह गर्भधारण से जन्म तक की अवस्था है। अन्य अवस्थाओं की अपेक्षा इस अवस्था में विकास की गति तीव्र होती है। इस अवस्था में अधिकांश विकास शिशु के शरीर में होते हैं। इस अवस्था की विकास प्रक्रियाओं के अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इस अवस्था की तीन उप-अवस्थाएँ हैं-

(i) बीजावस्था (Germinal Period) – यह गर्भधारण से दो सप्ताह तक की अवस्था है। इस अवस्था में शिशु का आकार अण्डानुमा होता है; जिसमें बाहर कोई विशेष परिवर्तन नहीं दिखाई देता है; परन्तु अन्दर कोष्ठ विभाजन की क्रिया चलती रहती है। लगभग दस दिन तक उसे माँ से कोई आहार प्राप्त नहीं होता है परन्तु बाद में यह गर्भाशय की दीवार से जुड़ जाता है और माँ से आहार प्राप्त करने लग जाता है।

(ii) भ्रूणावस्था (Embryonic Period) - यह दो सप्ताह से आठ सप्ताह तक की अवस्था है। इस अवस्था का जीव भ्रूण कहलाता है। इस अवस्था में शरीर के मुख्य-मुख्य अंगों का निर्माण होता है। दूसरे महीने के अन्त तक इसका भार दो ग्राम और लम्बाई एक इंच से दो इंच तक हो जाती है। भ्रूण की बाहरी परत (Layer) Ectoderm कहलाती है जिससे त्वचा, बाल, नाड़ी-मण्डल, दाँत और नाखूनों आदि का निर्माण होता है। मध्य की परत Mesoderm कहलाती है जिससे मुख्यतः माँसपेशियों का निर्माण होता है। तीसरी परत आन्तरिक परत होती है, जो Endoderm कहलाती है जिससे पाचन अंगों, लीवर, फेफड़े तथा ग्रन्थियों (Glands) का निर्माण होता है।

(iii) गर्भस्थ शिशु की अवस्था (Period of the Fetus) - यह आठ सप्ताह से जन्म से पूर्व तक की अवस्था है। भ्रूणावस्था में जिन अंगों का निर्माण होता है। उन्हीं अंगों का विकास इस अवस्था में होता है। इस अवस्था में गर्भस्थ शिशु के सभी प्रमुख अंग; जैसे- हृदय, फेफड़े, आदि कार्य करने लगते हैं और यदि सात महीने का गर्भस्थ शिशु भी जन्म ले लेता है तो वह जीवित रह सकता है।

(b) शैशवावस्था ( Infancy) – यह जन्म से चौदह दिनों की अवस्था है। इस अवस्था में शिशु को नवजात शिशु (New born or Neonate) कहते हैं। इस अवस्था में बालक को पूर्णत: नये वातावरण में समायोजित करना पड़ता है। यह नया वातावरण माँ के गर्भ की अपेक्षा पूर्णत: भिन्न होता है।

(c) बचपनावस्था (Babyhood) – यह अवस्था दो सप्ताह से दो वर्ष तक की अवस्था है। इस अवस्था के प्रारम्भ में बालक पूर्णतः असहाय होता है और अपनी आवश्यकताओं के लिए दूसरों पर निर्भर होता है, परन्तु विकास के साथ-साथ उसका उसकी माँसपेशियों पर नियन्त्रण बढ़ता जाता है और वह धीरे-धीरे आत्म-निर्भर होता जाता है। फलस्वरूप वह स्वयं खाना खाने, खेलने, चलने और बोलने जैसे व्यवहार सीख जाता है। प्रमुख संवेग इसी अवस्था में उदित हो जाते हैं।

(d) बाल्यावस्था (Childhood) - यह तीसरे वर्ष के प्रारम्भ से ग्यारह बारह वर्ष तक की अवस्था है। इस अवस्था को भी अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से दो अवस्थाओं- Early Childhood तथा Late Childhood में बाँटा गया है। लगभग छः वर्ष तक की अवस्था पूर्ण बाल्यावस्था है तथा छ: वर्ष के अन्तर से तेरह चौदह वर्ष तक की अवस्था उत्तर बाल्यावस्था है। पूर्व बाल्यावस्था में बालक अपने चारों ओर के मनोवैज्ञानिक वातावरण पर नियन्त्रण करना सीखता है तथा वह सामाजिक समायोजनों को सीखना भी प्रारम्भ करता है। इस अवस्था में जिज्ञासा (Curiosity) तथा समूह प्रवृत्ति (Gregariousness) आदि कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं जो बालक में पाई जाती हैं। उत्तर बाल्यावस्था लड़कियों में छः से तेरह वर्ष तक तथा लड़कों में छः से चौदह वर्ष तक होती है।

(e) वयःसन्धि (Puberty) - इसका कुछ भाग उत्तर - बाल्यावस्था और कुछ भाग किशोरावस्था में पड़ता है। लगभग दो वर्ष उत्तर - बाल्यावस्था और दो वर्ष किशोरावस्था में पड़ते हैं। इसीलिए इस अवस्था को Overlaping period कहा गया है। लड़कियों में यह अवस्था 11 से 15 वर्ष तक की अवस्था है तथा लड़कों में 12 से 16 वर्ष तक की अवस्था है। इस अवस्था में मुख्यतः यौन अंगों का विकास होता है। शारीरिक और मानसिक विकास की गति इस अवस्था में बाल्यावस्था की अपेक्षा तीव्र होती है। इस अवस्था के बालक अक्सर अपना सामाजिक और संवेगात्मकं नियन्त्रण खो देते हैं।

(f) किशोरावस्था (Adolescence) - बाल - जीवन की यह अन्तिम अवस्था है। यह तेरह - चौदह वर्ष से इक्कीस वर्ष तक की अवस्था है। सोलह-सत्रह वर्ष तक की अवस्था पूर्व किशोरावस्था कहलाती है तथा इसके बाद की अवस्था उत्तर-किशोरावस्था कहलाती है। विकास की इस अवस्था को कुछ लोग स्वर्ण आयु (Golden Age) भी कहते हैं। सामाजिकता और कामुकता इस अवस्था की दो मुख्य विशेषताएँ हैं जिनसे सम्बन्धित अनेक परिवर्तन इस अवस्था में होते हैं। इस अवस्था में कल्पना का बाहुल्य, समस्याओं का बाहुल्य तथा संवेगात्मक अस्थिरता जैसे लक्षण भी पाए जाते हैं।

(g) प्रौढ़ावस्था (Adulthood) - यह इक्कीस से चालीस वर्ष तक की अवस्था है। यह कर्त्तव्यों, उत्तरदायित्व और उपलब्धियों की अवस्था है। व्यक्ति अपने कर्त्तव्यों और उत्तरदायित्वों का तभी निर्वाह कर सकता है जब जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में उसका स्वस्थ समायोजन हो। स्वस्थ समायोजन की ही अवस्था में वह उपलब्धियों को प्राप्त कर सकता है।

2. विकास परिपक्वता और अधिगम का परिणाम (Development : The Product of Maturation & Learning)—बालक का शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार का विकास परिपक्वता और अधिगम का परिणाम माना जाता है। व्यक्ति के वंशानुक्रम से सम्बन्धित शारीरिक गुणों या क्षमता का विकास ही परिपक्वता है। शारीरिक और मानसिक परिपक्वता के कारण भी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होते हैं। यह परिवर्तन प्राकृतिक होते हैं और आयु के बढ़ने के साथ-साथ होते हैं। यह परिवर्तन सीखने के परिवर्तनों से भिन्न होते हैं; फिर भी सीखने और परिपक्वता में घनिष्ठ सम्बन्ध है। दूसरी ओर सीखना व्यवहार में स्थायी और प्रगतिपूर्ण परिवर्तन है, जो अभ्यास, प्रशिक्षण या पूर्व अनुभवों के कारण होता है। सीखने के द्वारा बालक नई प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करता है अथवा पुरानी प्रतिक्रियाओं की क्रियाशीलता को बढ़ाता है। गर्भकालीन अवस्था में विकास मुख्यतः परिपक्वता के कारण होता है तथा बहुत थोड़ा विकास बालक की क्रियाओं के कारण होता है।

3. विकास प्रतिमानों की भविष्यवाणी (Predictibility of Development Pattern) - प्रत्येक विकास अवस्था में कुछ न कुछ विशेष गुण होते हैं। बालकों में ये गुण एक विशेष अवस्था में उत्पन्न होते हैं। बालक का शारीरिक विकास दो नियमों के आधार पर चलता है। प्रथम Cephalocaudal Law है। इस नियम के अनुसार, शारीरिक विकास पहले सिर के क्षेत्र में, * फिर धड़ तथा अन्त में पैरों के क्षेत्र में होता है अर्थात् शारीरिक विकास सिर से पैरों की दिशा में होता है। दूसरा नियम Proximodistal Law है। इस नियम के अनुसार, सुषुम्ना नाड़ी के पास के क्षेत्रों में पहले और इन नाड़ी से दूर क्षेत्र में विकास देर से होता है; उदाहरण के लिए, उँगलियों की अपेक्षा हाथों पर उसका नियन्त्रण पहले हो जाता है।

4. निश्चित क्रम (Definite Sequence) - शारीरिक विकास के दो निश्चित क्रम है—

(i) मस्तकाधोमुखी क्रम (Cephalocaudal Sequence) - इस क्रम के अनुसार शारीरिक विकास सिर से पैरों की दिशा में होता है। विकास सिर के क्षेत्र में पहले फिर धड़ के क्षेत्र में, फिर पैरों के क्षेत्र में। लेटा हुआ बालक पहले सिर को और धड़ को उठाना सीखता है। बैठना घिसटकर चलना तथा खड़े होने सम्बन्धी क्रियाएँ वह बाद में करता है। इस उदाहरण से स्पष्ट है कि विकास सिर से पैर की दिशा में होता है।

(ii) निकट दूर क्रम (Proximodistal Sequence) - इस क्रम के अनुसार विकास सुषुम्ना नाड़ी के पास के क्षेत्रों में पहले और सुषुम्ना नाड़ी से दूर के क्षेत्रों में अपेक्षाकृत देर से होता है; उदाहरण के लिए, हाथों का विकास पहले और हाथ की उँगलियों का विकास देर से होता है। शारीरिक अंगों की भाँति मानसिक प्रक्रियाओं के विकास में भी एक निश्चित क्रम पाया जाता दीर्घकालीन अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि मानसिक विकास के प्रतिमानों का भी निश्चित क्रम होता है। भाषा, सम्प्रत्यय, सामाजिक और संवेगात्मक व्यवहार आदि सभी के विकास प्रतिमानों का एक निश्चित क्रम होता है।

5. विकास सामान्य से विशिष्ट की ओर होता है (Development Proceeds from General to Specific) - विकास अनुक्रियाओं को यदि देखा जाये तो विकास प्रक्रिया में सामान्य अनुक्रियाएँ पहले उत्पन्न होती हैं और विशिष्ट अनुक्रियाएँ बाद में उत्पन्न होती हैं। प्रारम्भ के बच्चों का उनके हाथ-पैरों और शरीर पर नियन्त्रण न होने के कारण उनकी अनुक्रियाएँ नियमित और नियन्त्रित नही होती हैं। परन्तु जैसे शारीरिक और मानसिक विकास बालक का होता जाता है, उसकी अनुक्रियाएँ सामान्य से विशिष्ट होती जाती है। चार-पाँच महीने के बालक को खेलने के लिए यदि गेंद दी जाय तो वह उसे पकड़ने के प्रयास में सम्पूर्ण शरीर से प्रतिक्रिया करता है परन्तु शारीरिक और मानसिक विकास के साथ-साथ धीरे-धीरे वह वस्तुओं को पकड़ना और अनेक वस्तुओं में से कुछ वस्तुओं को छाँटना सीख जाता है। शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के विकास में विकास अनुक्रियाएँ सामान्य से जटिल की ओर होती हैं। मानसिक विकास में संवेगात्मक अनुक्रियाओं का उदाहरण दिया जा सकता है। जन्म के कुछ दिनों तक संवेगात्मक अभिव्यक्ति विशिष्ट न होकर सामान्य होती है। बालक में संवेगात्मक अभिव्यक्ति के नाम पर केवल एक संवेगात्मक उत्तेजना (General Excitement) दिखायी देती है, जो सामान्य होती है। मानसिक विकास के अग्रसर होने के साथ-साथ बालक भय, क्रोध, प्रेम और घृणा आदि संवेगों को स्पष्ट और विभिन्नं मात्रा में अभिव्यक्ति करना सीख जाता है। अतः कहा जा सकता है कि विकास प्रक्रिया में बालक की अनुक्रियाएँ सामान्य से विशिष्ट की ओर अग्रसर होती है।

6. सन्तुलन और असन्तुलन के पहलू (Phases of Equilibrium & Disequilibrium) - विकास प्रतिमानों को यदि देखा जाये तो कुछ में सन्तुलन और कुछ में असन्तुलन पाया जाता है। जिन विकास प्रतिमानों में सन्तुलन होता है, बालक इन प्रतिमानों की अवस्था में अपना अच्छा समायोजन कर लेता है। इनमें उसका जीवन सरल और सुगम होता है। विकास प्रतिमानों में एक दूसरा पहलू -  असन्तुलन भी पाया जाता है। इस पहलू की उपस्थिति में बालक में तनाव, असुरक्षा, अनिर्णय आदि व्यवहार सम्बन्धी समस्याएँ पाई जाती हैं। लड़के और लड़कियों में यह सन्तुलन और असन्तुलन के पहलू कुछ भिन्न-भिन्न आयु स्तरों में पाए जा सकते हैं।

7. विकास एक निरन्तर प्रक्रिया है (Development is a Continuous Process) -  गर्भधारण के समय से लेकर मृत्यु तक विकास की प्रतिक्रिया चलती रहती है। यह और बात है कि भिन्न-भिन्न आयु स्तरों पर इसकी गति भिन्न-भिन्न होती है। कभी इसकी गति मन्द होती है तो कभी तीव्र हो जाती है (S. W. Bijou, 1968)। प्रारम्भ में बालक की भाषा केवल क्रन्दन (Crying) होती है, फिर क्रन्दन के कई प्रकार हो जाते हैं। इस प्रकार कई अवस्थाओं को पार करने के बाद बालक कुछ वाक्यों को बोलने लग जाता है। उसकी भाषा का विकास जीवन पर्यन्त चलता रहता है। अतः विकास एक अविराम प्रक्रिया है।

8. विकास की भिन्न-भिन्न गतियाँ (Variable Rates of Development) - विकास प्रक्रिया एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, परन्तु भिन्न-भिन्न अंगों का विकास भिन्न-भिन्न गति से होता है। शरीर के कुछ अंग अन्य अंगों की अपेक्षा जल्दी विकसित होते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों में एक विशिष्ठ समानुपात हो इसके लिए भी आवश्यक है कि शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों का विकास भिन्न-भिन्न गति से हो। हाथ, पैर और नाक आदि का विकास किशोरावस्था तक लगभग पूर्ण हो जाता है परन्तु कन्धे और मुखाकृति के निचले अंग अपेक्षाकृत देर से विकसित होते हैं। जिस प्रकार शारीरिक विकास की भिन्न-भिन्न गतियाँ होती हैं उसी प्रकार से मानसिक विकास की भी भिन्न-भिन्न गतियाँ होती हैं। मानसिक क्षमताओं के मापन के क्षेत्र में हुए अध्ययनों से इस तथ्य का पता चला है कि सृजनात्मक कल्पना का बाल्यावस्था में विकास तीव्र गति से होता है और किशोरावस्था तक इसका विकास अपनी चरम सीमा तक पहुँच जाता है।

9. विकास में सहसम्बन्ध (Correlation in Development) - विकास के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में कुछ-न-कुछ सह सम्बन्ध अवश्य पाया जाता है। शारीरिक और मानसिक क्षेत्रों में होने वाले विकास में बहुत अधिक सम्बन्ध होता है। यौन परिपक्वता रुचियों और व्यवहार में घनिष्ठ सह सम्बन्ध होता है। एक अध्ययन (L.M. Terman, & M. H. Oden, 1959) में यह देखा गया कि शारीरिक आकार; शक्ति, शारीरिक रख-रखाव तथा संवेगात्मक स्थिरता आदि में और बालक की बुद्धि में ऋणात्मक सह सम्बन्ध नहीं होता है। अध्ययनों में यह भी देखा गया कि जो बालक प्रसन्नचित होते हैं तथा संवेगात्मक अभिव्यक्ति समयानुकूल होती है, वह शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं। यह भी देखा गया है कि बालक का जैसे-जैसे सामाजिक विकास होता जाता है, वैसे-वैसे उसका नैतिक विकास भी होता जाता है। अतः स्पष्ट है कि शारीरिक विकास के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले विकास आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं, इसी प्रकार मानसिक क्षेत्रों में होने वाले विकास भी आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित होते है। शारीरिक और मानसिक दोनों ही क्षेत्रों में होने वाले विकास भी आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित होतें हैं।

10. वैयक्तिक भिन्नताएँ (Individual Differences) बालकों के विकास-प्रतिमानों में काफी सीमा तक समानता पाई जाती है, परन्तु प्रत्येक बालक के विकास प्रतिमानों का अपना वैयक्तिक स्वरूप होता है। भिन्न-भिन्न बालकों के विकास की गति में भी भिन्नता पाई जाती है। कुछ बालकों में शारीरिक और मानसिक विकास की गति मन्द, या Step by step fashion में होती है, जबकि दूसरे बालकों में विकास की गति तीव्र हो सकती है। अतः स्पष्ट है कि सभी बालकों में एक विशेष आयु-स्तर पर विकास समान मात्रा में नहीं हो पाता है।

11. प्रतिमानों में स्थिरता (Consistency With in Patterns) -  भिन्न-भिन्न बालकों में विकास की गति भिन्न-भिन्न होती है, फिर भी बच्चों के विकास में स्थिरता देखी जाती है। विकास - प्रतिमानों की यह स्थिरता बालक के वंशानुक्रम और पर्यावरण के अपूर्व संयुक्तीकरण से नियन्त्रित होती है। कुछ अध्ययनों (E. L. Vincent & P. C. Martin, 1961) के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जो बच्चे एक आयु विशेष में लम्बे होते हैं, वह प्रत्येक आयु स्तर पर लम्बे ही रहते हैं, उनके लम्बाई सम्बन्धी विकास- प्रतिमान में स्थिरता पाई जाती हैं। इसी प्रकार से जो बच्चे एक आयु विशेष में छोटे होते हैं, वे सभी आयु स्तरों पर छोटे ही रहते हैं। मानसिक विकास- प्रतिमानों में भी इसी प्रकार की स्थिरता पाई जाती है; उदाहरण के लिए, एक आयु स्तर विशेष पर जो बच्चे मन्द-बुद्धि के होते हैं, वे अन्य आयु स्तरों पर भी मन्द-बुद्धि के ही रहते हैं। इसी प्रकार से जिन बच्चों का मानसिक विकास एक आयु स्तर विशेष पर तीव्र गति का होता है, अन्य आयु स्तरों पर भी उनका मानसिक विकास उसी गति से बढ़ता है। जन्म से लेकर परिपक्वावस्था तक बुद्धि के क्षेत्र में जो अध्ययन हुए हैं, उनसे स्पष्ट हुआ है कि इस दिशा में भी विकास प्रतिमानों में स्थिरता पाई जाती है।

12. प्रत्येक विकास अवस्था के स्वाभाविक लक्षण होते हैं (Every Developmental Stage has Characteristic Traits)- प्रत्येक आयु विशेष में बालक के व्यवहार में दो चीजों की झलक मिलती है- प्रथम, उस बालक के आयु स्तर के विकास- प्रतिमानों की तथा द्वितीय, उसकी वैयक्तिकता की। प्रत्येक आयु स्तर पर जो विकास प्रतिमान पाये जाते हैं, उनके अपने कुछ विशिष्ट और स्वाभाविक गुण होते हैं जो अन्य आयु स्तर के विकास-प्रतिमानों में नहीं पाये जाते हैं, उदाहरण के लिए, बाल्यावस्था में समान यौन के बालकों में एक बालक अधिक रुचि प्रदर्शित करता है, जबकि किशोरावस्था में यही बालक विपरीत यौन के बालकों के साथ बातचीत और खेलना पसन्द करता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
  4. प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
  6. प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
  7. प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  8. प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
  9. प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  12. प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
  14. प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
  16. प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
  18. प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
  19. प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
  20. प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
  21. प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
  22. प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
  23. प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
  25. प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
  26. प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
  27. प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
  29. प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
  30. प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
  31. प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
  35. प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
  36. प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
  37. प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
  38. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
  39. प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  40. प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
  43. प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
  44. प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
  45. प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
  46. प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
  48. प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
  49. प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
  50. प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
  52. प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
  53. प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
  54. प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
  55. प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
  58. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
  59. प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
  60. प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
  61. प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
  62. प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
  64. प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
  66. प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  67. प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
  68. प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
  69. प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
  70. प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
  71. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
  73. प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
  74. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
  75. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
  76. प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
  77. प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
  78. प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
  79. प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
  80. प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
  81. प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
  83. प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
  84. प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
  85. प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
  86. प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
  87. प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
  88. प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
  89. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  90. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  91. प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  92. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  95. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  96. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  97. प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  98. प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
  99. प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
  100. प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
  101. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
  103. प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
  104. प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  105. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  106. प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
  107. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  108. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
  109. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
  110. प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
  111. प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
  113. प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
  114. प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
  115. प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
  116. प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
  117. प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
  118. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  119. प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
  120. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
  121. प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
  122. प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
  123. प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
  124. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  125. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  126. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
  127. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
  128. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
  129. प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
  130. प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
  131. प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
  132. प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
  134. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  135. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
  136. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
  137. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
  139. प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
  140. प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
  141. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  142. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
  143. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
  144. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book